किसी खूबसूरत सा बनाने की जिद मे
लगा दोगे तुम सलीके का टाँका
पर कहाँ से लाओगे
वो सुबह जिसकी अलगनी में पिछली रात के टुकड़े टँगे हैं
उँगलियों की चुहल
और बतियाती आँखें
जब आँखें मींचे
हँसती थी वो ज़ोर से
बेढंगी सी घूम आती पूरे गांव
और नाचती थी
पिघलते अंधेरों पर
डाल एक पाँव मे पायल
शायद सीख जाये सब सा होना
पर वो जलना, बूँद बूँद
गिर कर रिसना
और फिर खत्म हो जाना
कहाँ से लाओगे
उसे दोबारा
कहाँ से लाओगे

BEautifully Written !! Goes well with the Monsoon Season 🙂
Totally