कुछ लम्हों में सिर्फ प्रेमिका बन कर रह जाती है वो
उतार फेंकती है वो सब कुछ जो ओढ़ लिया है ज़िन्दगी की तरह
जब जॉर्डन के साथ देती है जवाब
“और कहीं रह नहीं पाउँगा मैं”….हीर के पूछने पर
जब मिन्नत करती है वेद को कि मिला दे उसे खुद से कभी
और तारा की तरह हंस देती है कह कर
“मेरी लाइफ की सबसे एक्स्ट्राऑर्डिनरी स्टोरी का हीरो आर्डिनरी कैसे हो सकता है”
जब आंसू का दंसवा हिस्सा अटक जाता है कोने में
हिला देती है वो सर कि “कुछ न कुछ तो रह जायेगा न हमेशा”
जब बड़बड़ करती है वो जय के साथ
शायद सोल मेट जैसा सच में होता होगा
और लिखती है डायरी में छुपा कर सबसे
“जहाँ से आई हूँ वहां जाना नहीं चाहती और जहाँ हूँ वहां रहना नहीं चाहती ”
और रो लेती है थोड़े देर, अपनी कहानी के इंतज़ार में
तो वो सिर्फ प्रेमिका होती है, खालिस प्रेमिका
जो कहती है खुद से कि कुछ पूछना मत, वरना मैं सच बोल दूंगी
तभी अन्दर से आती कुकर की सीटी की आवाज़
उसे खींच कर ले जाती है वापस वहां
जहाँ वो सिर्फ एक औरत है जो सत्यनिष्ठा के सबूत जुटा रही है
जहाँ वो प्रेमिका नहीं है
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